किसी देश या फिर शहर को क़रीब से देखना - हिंदी कविता
किसी देश या शहर का क़रीब से देखना
- प्रदीप गुप्ता
हमारे एक मित्र दो सप्ताह से नज़र नहीं आ रहे थे
हम सभी मित्र उनके बिना सहज जी नहीं पा रहे थे
कल चाय की टपड़ी पर जो उनकी तशरीफ़ आयी
तब कहीं जा के हम मित्रों की जान में जान आयी
राम भाई ने उनकी ग़ैर हाजरी का सबब जो पूछा
रख दिए इम्पोर्टेड चाकलेट और एक स्काच का अद्धा
वे पंद्रह दिनों में आठ देशों का भ्रमण करके आए हैं
उन्हें लगा वहाँ के अनुभवों का ख़ज़ाना समेट लाए हैं
एक एक करके वे वहाँ के क़िस्से बयान करने लगे
यही नहीं अपने आप को वहाँ का विशेषज्ञ समझने लगे
तभी मेरे मन में उस समय चंद प्रश्न उभर कर आए
क्या कोई देश हमें दो दिन में समझ में आ जाए ?
देश की क्या बात करें मुझे शहर भी जटिल लगते हैं
किसी भी शहर को समझने में महीनों लगते हैं
हर शहर की अपनी तहज़ीब, रवायत हुआ करती है
हर गली तक अपने भीतर कोई इतिहास समेटे रहती है
और कोई शहर सिर्फ़ इमारतों , सड़कों से नहीं बनता है
इसके हर कोने में यहाँ रहने वालों का दिल धड़कता है
जो बरस दर बरस साथ मिल के साझा संस्कृति रचते हैं
जिसके जलवे वहाँ की जीवन शैली में झलकते हैं
किसी देश को समझना हो वहाँ के शहरों को जिया जाए
वहाँ की गलियों और सड़कों पर खुल कर टहला जाए
पास के गाँव में जा के किसानों के बीच लंच किया जाए
क्या मज़ा हो पंच-तारा में नहीं परिवारों के बीच रहा जाए
वहाँ के लोक गीत और लोक धुनों पर नाच के देखा जाए
सड़क के किनारे लगने वाले खोमचों का स्वाद चखा जाए
जिस तरह वो ज़िंदगी जीते हैं उसके कुछ सबक़ सीख लें
कुछ उनके बीच अपनी कहें कुछ उनकी भी सुन लें
इस तरह आपको सैर करने में अलग सा लुत्फ़ आएगा
किसी देश के लोगों के जीने का अन्दाज़ समझ आएगा
घूमे हुए देशों को आँकड़ा समझ के गिनती न किया करें
जहां भी जाएँ कुछ दिनों वहाँ के लोगों की तरह रहा करें
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