Hindi Ghazal : Silsila Mohabbat Ka
सिलसिला मोहब्बत का
सिलसिला मुहब्बत का शुरू हुआ है अभी इम्तिहान बहुत आएँगे
रात आँखों आँखों में कटेगी इसी तरह के मक़ाम बहुत आएँगे
संजो के रख लेना ज़रूर इन पलों को दिल के किसी भी कोने में
जब कभी अकेलापन सताएगा आपके काम बहुत आएँगे .
इस नाकाम मोहब्बत का फ़साना लिखने बैठ गया अग़र मैं भी
बहुत अलग सा क़िस्सा है शाया हो होगा तो दाम बहुत आएँगे
कहाँ शुरू हुई कहाँ जा के ख़त्म हुई यह कहानी अभी बताता हूँ
दिल थाम के सुनना बहुत दर्द भरी है इसमें किरदार बहुत आएँगे
बदल रहा है वक्त सब कुछ बिकाऊ हो चुका है यहाँ पे इन दिनों
संभल के रहना, वफ़ा ख़रीदने के वास्ते गुलफ़ाम बहुत आएँगे
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