किस को हक़ है ग़ज़ल प्रदीप गुप्ता
किस को हक़ है
कुछ पल बैठ के सुनना मेरी बातें आँख जब भरें मेरी
फिर फ़ैसला आपका रहेगा आप बनें या न बनें मेरी
मैं बड़े गौर से सुनता हूँ हर लफ़्ज़ जो आप कहते हैं
मैं चाहता हूँ जब मैं कहने लगूँ तो आप भी सुनें मेरी
मैं तो कलमकार हूँ जो देखता हूँ वही लिखता हूँ
किस को हक़ है जो तय करने लगे हदें मेरी
हरेक शख़्स दुनिया में जो आया है उसे जाना होगा
मेरे बारे में अभी कह दें मेरे बाद न करें तारीफ़ें मेरी
जब भी करता हूँ कोई काम कई बार सोच लेता हूँ
ऐसा ना हो कहीं जो शर्म से झुक जाएँ आँखें मेरी
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