दोस्त : हिंदी कविता Hindi Poetry
दोस्त
मिल गया एक पुराना दोस्त अचानक रास्ते में
कई हफ़्तों का अवसाद पिघल कर बह गया
कितने क़िस्से छिड़ गए एक एक करके
अनकहा भी बीच में कुछ कह गया
उस पुरानी चाय टपड़ी पे गए ज़माना हो गया था
आज चाय बन मस्के से दिन सुहाना हो गया था
याद आया सामने कालेज था लड़कियों का वहीं
आती जाती टीचरों में आज पुरानी कई युवती दिखीं
चाय की चुस्की के साथ उन यादों का सैलाब
आया और कुछ क्षण के लिए वहीं पर रह गया
कितने क़िस्से छिड़ गए एक एक करके
अनकहा भी बीच में कुछ कह गया
दोस्त के चेहरे को देखा उसपे पाँच दशकों की परत थीं
डेंचर नया था बन चबाने में उसे दिक़्क़त लग रही थी
बाल कुछ बाक़ी बचे थे जिनको फ़ुरसत से रंग लिया था
कंधे ज़रा से झुक गए थे हाथ में छड़ी को रख लिया था
फिर भी उसके चेहरे पर अजीब सा नूर था
जो उसकी सफल पारी की कहानी कह गया
कितने क़िस्से छिड़ गए एक एक करके
अनकहा भी बीच में कुछ कह गया
एक एक करके पुराने दोस्तों का ज़िक्र भी आता गया
उसके चेहरे पर इस बीच में एक रंग आ के जाता गया
बचपने के जो दोस्त थे उनके बीच कोई लालच नहीं था
खेलते थे साथ मिल के जाति मजहब का बंधन नहीं था
जैसे जैसे पहुँचे नौकरी और व्यवसाय के पड़ाव पे
वो बचपन का ख़ज़ाना समय के साथ बह गया
कितने क़िस्से छिड़ गए एक एक करके
अनकहा भी बीच में कुछ कह गया
वक्त के साथ पुराने दौर की यादें विस्मृत हो जाती हैं
कोई पुराना दोस्त मिल जाए तो अचानक झिलमिलाती हैं
वे यादें बैंक बैलेंस से कही जियादा क़ीमती महसूस होती हैं
इन को कोई छीन नहीं सकता ये जीने का अलग आनंद देती हैं
इसलिए पुराने दोस्तों को खोज के उनसे ज़रा मिलते रहो
वो ख़ुशनुमा समय में ले जाएँगे जो कभी का बीत गया
कितने क़िस्से छिड़ गए एक एक करके
अनकहा भी बीच में कुछ कह गया
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