86 वर्ष का नौजवान आबिद सुरती
86 वर्ष के नौजवान आबिद सुरती
यही कोई आठ साल का रहा होऊँगा , घर में बाबूजी अन्य पत्रिकाओं के साथ धर्मयुग, पराग , इन्द्रजाल कामिक्स भी लाते थे , धर्मयुग में ढब्बू जी कार्टून स्ट्रिप रहती थी , वो आख़िरी पन्नो में होती थी , मेरी धर्मयुग पढ़ने की शुरुआत इसी से होती थी , बड़ी जिज्ञासा होती थी कि आख़िर यह आबिद सुरती कौन शख़्स है जो हर सप्ताह एक नया और मजेदार कार्टून बनाता है , फिर इन्द्रजाल कामिक्स के माध्यम से उनके द्वारा गढ़े चरित्र बहादुर से परिचय हुआ जो किसी भी मायने में विदेशी हीरो जादूगर मेंड्रेक, टारजन या फिर फेंटम से कमतर नहीं था .
उन्ही आबिद सुरती से जब आज मुलाक़ात अपने चित्रनगरी संवाद मंच पर हुई तो ज़ेहन में ढब्बू जी और बहादुर आ कर खड़े हो गए. आबिद भाई 86 साल के हो चुके हैं लेकिन उम्र उनके लिए ठहर चुकी है , एक बाल सुलभ व्यक्तित्व , हमेशा कुछ बेहतर करने का जज़्बा. सच तो यह है कि उन्हें देख कर और मिल कर ज़िंदगी को एक नौजवान की तरह जीने की इच्छा वापस जाग जाती है.
उनकी NGO ड्रॉपडेड ने मीरा रोड इलाक़े के लोगों को सिखाया है कि पानी की चंद बूँदे बचा कर सामूहिक रूप से हज़ारों लीटर पानी बचाया जा सकता है .
सेंट्रल बम्बई के डोंगरी इलाक़े में झुग्गी में पले और बड़े हुए आबिद ने ज़िंदगी के सबक़ डोंगरी की गलियों और सड़कों पर सीखे जहां करीम लाला , हाजी मस्तान और दाऊद जैसे लोग भी पले और बड़े हुए थे . उनकी माँ झुग्गी झौंपडी में रह कर भी उन्हें एक अच्छा मुसलमान और अच्छा डाक्टर बनाना चाहती थीं इसलिए पड़ोस की मस्जिद में पढ़ने भेजा , आबिद में नैसर्गिक रचनात्मक प्रतिभा थी जिसे वे आगे बढ़ाना चाहते थे , परिवार के पास उन्हें आगे पढ़ाने के लिए पैसा नहीं था इसलिए स्वयं पैसा कमाते हुए अपनी जे जे स्कूल आफ आर्ट्स से शिक्षा पूरी की . पढ़ने के लिए पैसा जुटाने के लिए उन्होंने फ़िल्म के स्पाट बाय का काम किया , जहां उन्हें अन्य काम के साथ साथ फ़िल्म की हीरोईन को जूते भी पहनाने का काम करना पड़ता था . इसके साथ ही उनका लिखना पढ़ना भी जारी था उसी दौरान उनकी धर्मयुग में एक कहानी छपी थी , यूनिट में जब यह खबर फैली उन्हें हीरोईन के साथ संवाद सिखाने का काम दे दिया गया , यही नहीं उस दौरान एडिटिंग में भी सहायक का काम किया .
आबिद भाई का फ़ोकस रचनात्मक कार्य पर रहा था इसलिए एक अपवाद को छोड़ कर कभी नौकरी नहीं की , जहां कुछ समय की वहाँ भी अपनी शर्तों पर काम किया.
उन्होंने कार्टून बनाने के साथ ही उपन्यास लिखे , कहानी लिखीं , चित्रकारी की . उनकी आत्मकथा मुसलमान हिंदी में प्रकाशित हुई जिसे पेंग्विन ने अंग्रेज़ी में Sufi टाइटिल से प्रकाशित किया था .
आबिद भाई नई पीढ़ी के लिए रचनाधर्मी लोगों के लिए रोल माडल बन चुके हैं .
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