कभी मेरे हो के देखो : हिंदी ग़ज़ल Hindi Ghazal
कभी मेरे हो के देखो
तुम्हें देख के अक्सर जाने क्या क्या सोच लिया करता हूँ
इन्हीं भावनाओं को शब्दों के धागे में पिरो लिया करता हूँ
इधर देख जब स्मित मुस्का देते हो मेरा दिन बन जाता है
और तुम्हारी पीड़ा में अक्सर आँख भिगो लिया करता हूँ
शब्द तुम्हारे जब भी कुछ पल मुझ को आ के छू लेते हैं
खंड काव्य अविरल धारा जैसे उन्हें संजो लिया करता हूँ
जितने दिन तुम मुझ से दूर कहीं अपने में गुम हो जाते हो
उतने दिन को जीवन का कृष्ण पक्ष सोच लिया करता हूँ
इन अनुभूत क्षणों को ग़ज़लों का नाम दे दिया यारों ने
जो कुछ तुमसे पाया है ग़ज़लों में सौंप दिया करता हूँ
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