कांच के बरतन हैं रिश्तों से कहीं बेहतर ghazal
कांच के बरतन हैं रिश्तों से कहीं बेहतर
काँच से बने बरतन हैं रिश्तों से कहीं बेहतर
जब टूटते हैं दरकते हैं आवाज तो आ जाती है
तुम आज आए हो विरासत के फ़ैसले के लिए
क्या ख़ूबसूरत पल या याद अलग हो पाती है
ये बड़ा सच है रिश्ते बनाना सहज नहीं होता
पर अगर बहक जाएँ कड़ी झटके से टूट जाती है
दिल के रिश्तों को ख़िलोना न समझ के खेलो
इन्हें संवरने में एक जिंदगी कम पड़ जाती है
तुम्हारी ज़िद है रिश्तों को सरमाए से तोला जाए
ये फ़क़ीरों की दौलत है हर हाथ नहीं आती है
जब चला जाता है कोई तुम्हारी ज़िन्दगी से प्रदीप
उसी के बाद में अच्छे या बुरे की समझ आती है
काश मैं आदमी न हो के इक आदमक़द आइना होता
तो पता चलता आपकी रंगत किस वजह उड़ जाती है
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