An Ode To Mumbai मुंबई मेरी जान
मेरी जान है मुंबई
मेरी जान है मुंबई
कुछ परेशान है मुंबई
पहले शाम होते महफ़िलें सज जाती थीं
संगीत की स्वर लहरी भी जग जाती थीं
नशिस्तों में अदब गुलज़ार रहता था
बहस मुबाहसों में रातें कट जाती थीं
ज़रा सुनसान है मुंबई
कुछ परेशान है मुंबई
जब समंदर के किनारे से गुज़र जाता हूँ
एक अजब सा मंजर वहाँ पे पाता हूँ
न सैलानियों की भीड़ है न बच्चों की आवाज़ें
आती जाती लहरों को उदासी से भरा पाता हूँ
ऐसा नहीं अनजान है मुंबई
कुछ परेशान है मुंबई
बीच में ठीक होते से हालात नज़र आते हैं
लोग अगली लहर की आहट से डर जाते हैं
अजीब सा ख़ौफ़ लगता है इस महामारी का
बाज़ार खुलते हैं और फिर बंद हो जाते हैं
इस लिए हैरान है मुंबई
कुछ परेशान है मुंबई
ऑफ़िस वीरान हैं ज़्यादातर लोग अब नहीं आते
आस पास के टपरी वाले भी अब नज़र नहीं आते
ऊपर फ़ॉर्मल शर्ट टाई है नीचे पहना पायजामा है
घर से काम करने में ऑफ़िस जैसे मज़े नहीं आते
आज एक इम्तिहान है मुंबई
कुछ हैरान सी है मुंबई
फिर भी इस शहर में अजीब सा सुकून रहता है
तकलीफ़ तो है मगर कोई ग़मगीन नहीं रहता है
जो बुरा वक्त शहर पर आया है चला जाएगा
इसी उम्मीद में हर शख़्स अपने में मगन रहता है
अपनी निगहबान है मुंबई
और मेरी जान है मुंबई
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