Contemporary Poetry वतन

राष्ट्र कोई भोगौलिक इकाई मात्र नहीं है , यह वो शै है जो व्यक्ति के साथ चलती है सुनिए यह नज़्म ‘वतन’
https://youtu.be/HtI7j2a9UDw

वतन 


खींच धरती पे लकीरें सरहदें तो दीं बना 

पर दिलों के बीच बसता है वही अपना वतन 


जो समुंदर लांघ के परदेस बस जाते हैं लोग 

उनकी रग रग में बहा करता यही उनका वतन 


वो भले भाषा हो , खाना या फिर देसी पहनावा 

इन सभी के बीच मन खोज लेता है कहीं अपना वतन 


जब कभी रहना पड़े दूर अजनबी लोगों के बीच 

हम-वतन दिख जाए तो मिल जाता वहीं अपना वतन 


हो भले आराम कितना देश के  बाहर कहीं 

लौट फिर के प्यार देता है यही अपना वतन 

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