मेरा नाम contemporary Hindi Poetry
मेरा नाम
मेरा नाम मिटा कर फिर से वापस लिखने लगते हो
क्या तुमको सम्बोधन दूँ मैं , ना जाने क्या लगते हो
कभी सुरमई शाम कभी तो भोर सुबह की एक किरण
पल में तोला पल में माशा नए नए रूप में दिखते हो
बरसों मरु भूमि में भटकी थकी थकी सी काया को
जीवन का नव भाव जगा दे वो अमराई सी लगते हो
मैं किसी और लोक की यात्रा में गुम हो जाता हूँ
तिनका बीच दांत में रख के जब भी तुम हंसते हो
वीणा के तारों पर जैसे पदमाक्षि के स्वर जागते हैं
मुझको तो उस स्वर लहरी की मूरत लगने लगते हो
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