Contemporary Hindi Poetry कब बोलोगे
अब नहीं बोलोगे
अब नहीं बोलोगे , कब बोलोगे ?
उम्र का अंतिम चरण है
मृत्यु को करना वरण है
यह सही अंधियारा गहन है
पर क्यों इसे करना सहन है
दिल की गिरह खोलोगे, कब खोलोगे ?
साँस कितनी घुट रही है
कील सी एक चुभ रही है
पीर परवत हो चुकी है
हूक सी इक उठ रही है
वैठ के रो लोगे, बस रो लोगे
ऐसा क्यों कर घट गया है
ज़मीर सस्ता बिक गया है
झूठ अब हावी चेतना पर
सच कहीं पर बंट गया है
किसी के साथ ही हो लोगे, क्यों हो लोगे
पौरुष थक के बैठा हुआ है
आख़िर ऐसा क्या हुआ है
रोशनाई है नहीं क्या पास में
क्या कलम टूटा हुआ है
शब्द कब तलक तोलोगे, क्यों तोलोगे
पेट भूखे, और पड़ी बिवाई है
आश्वासन हैं और ढिठाई है
जिस भरोसे जी रहे अब तलक
वो तो अब रस्म की अदाई है
फिर होंठ सी लोगे , होंठ सी लोगे
Comments
Post a Comment