बड़े बड़े शहर Tale Of Large Cities - Poetry
बड़े बड़े शहर
बचपन में किसी ने बताया था
ये बड़े बड़े शहर
लखनऊ के इमामबाड़े की भूल-भूलय्या की तरह से होते हैं
जिसमें प्रवेश के लिए कोई पासवर्ड नहीं होते
लेकिन वहाँ से वापस निकालने के लिए
कोई पासवर्ड काम नहीं करता है.
चलते जाओ घूमते जाओ
इनका विस्तार समेटे रहता है गगनचुम्बी इमारतें,
तंग गलियों में छुपे बाज़ार ,
कुछ ऐसे खाने पीने जो और कहीं न मिल पाएँ
नदियाँ , झीलें , जंगल , झरने
थक जाओ तो कहीं बैठ के सुस्ता लो
पेट भरने के लिए कुछ भी कर लो
तुम्हारी योग्यता से ज़्यादा मिल जाता है
बस काम कर के दे दो .
यहाँ किसी को परवाह नहीं तुम क्या कर रहे हो
किसी को तुम्हारी बोली ,
खाने पीने , पहनावे या प्रतीकों से
कोई लेना देना नहीं रहता
तुम्हें देख के अमूमन लोगों के दिल पर
सांप नहीं लोटने लगता है
क्योंकि वे ऊँचाई के लिए तुम्हें नहीं
अंटालिया बिल्डिंग को देखते हैं !
बाहर से जो लोग कुछ दिनों के लिए
इन शहरों में घूमने के लिए आते हैं
जेबें ऊपर तक लबालब भरी होती हैं आसान पैसे से
वे यहाँ घूमते फिरते हैं
जम कर मानसिक , शारीरिक अय्याशी करते हैं
इसके बावजूद उन्हें यहाँ हर चीज़ में
खोट नज़र आता है
उन्हें हुनर , श्रम और उद्यमता नहीं दिखती
वो सपने नहीं दिख पाते
जो यहाँ के लोग फुटपाथ पर लेटे हुए भी
खुली आँखों से देखते हैं
और इन्हें अपने जीवन काल में ही सच करने के लिए
पूरी शिद्दत से लग जाते हैं
यही बात शहरों को गाँव और क़स्बों से अलग करती है
और इन को अलग मयार पर खड़ा करती है
जो 24 x 7 इन्हें ज़िंदा रखती है ,
टूट के बिखरते हुए लोगों को
आगे बढ़ने का हौसला भी देती है
ये संघर्ष अक्सर फूट पड़ते हैं कविता में ,
कहानियों में , उपन्यासों में
नाटकों में , कला वीथिकाओं में
आप चाहें तो पढ़ सकते है
यहाँ के उद्दमी की भाव भंगिमाओं में .
एक और रहस्य भी है
लोगों को यहाँ रह कर बाहर निकलने का
पासवर्ड मिल जाता है
मगर वे उसका इस्तेमाल शायद ही करते हों
क्योंकि शहरों की ज़िंदगी की भूल-भूलय्या
में जीने का अलग ही जुनून है
बावजूद मेहनत और संघर्ष के यहाँ अलग ही सुकून है .
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