देह की भाषा contemporary Hindi poetry
कितना मुश्किल है
बहुत आसान है कोई क़िस्सा या कोई ग़ज़ल
काग़ज़ पर लिख देना
बहुत मुश्किल है किसी के सामने
अपने दिल की बात रख देना
ज़ुबां साथ नहीं दे पाती है
साँस फूल जाती है
कई बार तो मुनासिब शब्द खोजते खोजते
ज़िंदगी कट जाती है
उसके सामने कुछ कहना चाहते हैं
पर कुछ और ही कह जाते हैं
अच्छे अच्छों को
पसीने छूट जाते हैं !
सामने वाले को कुछ कुछ
इसका एहसास हो जाता है
मगर उसको भी उपयुक्त शब्द नहीं मिलते
संवाद अटपटा सा रह जाता है
बेहतर हो उन ख़ूबसूरत क्षणों में
कुछ देर मौन को पसरने दें
मुश्किल सहज हो जाएगी
शब्दों का अनुवाद स्पर्श को करने दें
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