Contemporary Hindi Poetry अकेले सफ़र में
अकेले सफ़र पे
अकेले सफ़र पे निकल हम पड़े हैं
न कोई साथ फिर भी ज़िद पे अड़े हैं
बहुत सोच के सच से रिश्ता बनाया
यह भी सही इसमें जोखिम बड़े हैं
उनका शिराजा झूठ पर ही टिका है
इतर कुछ न सम्भव वो चिकने घड़े हैं
अगर हम को लगता ये रास्ता सही है
चलेंगे उसी पे भले चाहे ख़तरे बड़े हैं
न छूटे कभी भी यह दामन तुम्हारा
बड़ी मुश्किलों से आप हम से जुड़े हैं
मुकुट सिर्फ़ सर की हिफ़ाज़त करेगा
भले चाहे सादा हो या हीरे जड़े हैं
हमें लग रहा हो गया प्यार तुम को
ख़ामोश चेहरा कई रंग आ के उड़े हैं
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