नहीं भरोसा : हिंदी कविता Hindi Poetry
नहीं भरोसा बचा सुहाने सपनों पर
जो कुछ दिन पहले दिखलाए थे
इससे बेहतर यही रहेगा प्यारे बंधु
माज़ी ही मेरा मुझको वापस कर दो
धर्मप्राण भक्तों से है करबद्ध निवेदन
बहुत हो गयीं दीन धरम की चर्चाएँ
छोड़ो अब मस्जिद और मंदिर के मसले
यही समय है दुखियारों की पीड़ा हर लो
कैसा मंज़र ! जूझ रहा है देश इस समय
अनदेखे से घातक एक विषाणु से
जो भी सीमित संसाधन हैं अपने बस में
जिसे ज़रूरत है उस की झोली में भर दो
नहीं दिखायी देते हैं वो कठिन समय में
जिन्हें बिठाया था तुमने पलकों पर अपनी
शब्दहीन छिप कर बैठे हैं कहीं सुरक्षित
कायनात देखेगी उनसे तुम इतना ही कह दो
अर्जुन बन जाओ अपना गांडीव सम्भालो
ठोस कदम ही लेने होंगे सबकी ख़ातिर
संकट के पल में खुद को मज़बूत बनाओ
रहो सुरक्षित घर से बीमारी को धक्का दे दो.
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