एक छोटे से विषाणु : हिंदी कविता Hindi Poetry
इक छोटे से विषाणु ने कई चेहरे बेनक़ाब कर दिए
दावे कई हज़ार किए सब के सब तार तार कर दिए
किस से पूछें , किस से माँगे इस आड़े वक्त में मदद
इस ख़ौफ़ के साये में सारे लोग किस तरहा से जिए
हाथ में अपने ही थी रोगमुक्त होने की सारी चाबियाँ
भीड़ का हिस्सा बने और सारे रक्षा कवच खो दिए
आस केवल एक ही बाक़ी बची है आम जन के हाथ में
आत्मबल जिन्होंने न खोया वो सब सुरक्षित हो गए
है महामारी इतनी विकट कि बच के रहना है कठिन
डर के घर में जो छिपे है वो समझ लो बच गए
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