करोना की दूसरी लहर और सकारात्मक सोच
अब तो आँसू भी कमबख़्त दिल हल्का नहीं कर पा रहे हैं
ये कैसा दौर आया है अपने साये भी छोड़ कर जा रहे है
भाषण मै सुना है कि इस दौर में सिर्फ़ सकारात्मक सोचो
खो दिया जिसने अपनों को सोचो वो कैसे सह पा रहे हैं
एम्बुलेंस अगर मिल जाए तो अस्पताल में बेड नहीं मिलता
अगर इक बेड मिल जाए तो ख़ाली सिलिंडर नचा रहे हैं
अब नहीं सुनना कोई तक़रीर या फिर किसी का मशवरा
ज़रूरतमंद का इलाज हो जाए लोग सिर्फ़ इतना कह रहे हैं
जो दुखी के दर्द से होकर दुखी कुछ कर दिखाएँ इन दिनों
ऐसे लोगों की कहानी इतिहास के पन्ने दर्ज करना चाह रहे है
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