Hindi Satire मज़े भांग के

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भांग के मजे

आज होली है. भाई लोगों ने इस त्योहार को सीधे सीधे नशे और ख़ास तौर पर भांग के नशे से जोड़ दिया है . उत्तर भारत में तो होली का उत्सव बग़ैर ठंडाई के पूरा नहीं होता और ज़्यादातर लोगों के लिए ठंडाई का अर्थ भांग मिली ठंडाई होता है. भांग के सेवन से लोगों को बड़े बड़े विकट और विलक्षण अनुभव होते हुए देखे गए हैं .

पहले मैं अपनी आप बीती सुनाता हूँ . बात यही कोई चालीस साल पहले की है , मेरे एक मित्र ने अपने घर होली की पार्टी रखी थी, पारिवारिक आयोजन था इसलिए दारू नहीं थी पर ठंडाई थी . मित्र ने जाते ही मुझे ठंडाई का गिलास पकड़ा दिया . मैंने गिलास लौटाते हुए विनम्रतापूर्वक उनसे कहा ,’ मैं भांग का सेवन नहीं करता हूँ .’

मित्र ने माँ की क़सम खाई और कहा ,’ भाई साहब इसमें भांग नहीं डाली है .’ बंदा माँ की क़सम खा रहा था , इसका मतलब सच बोल रहा होगा , फिर भी डर तो था ही , डरते डरते दो घूँट पिए और फिर  गिलास को चुपचाप टेबिल  के नीचे बहा दिया. 

पार्टी में बहुत क़िस्म के स्नैक्स  थे ,  ख़ास तौर पर आलू की टिक्की बहुत ही अच्छी बनीं थीं , हरी घटनी , दही और सौंठ के साथ ग़ज़ब का स्वाद दे रही थीं. स्वाद स्वाद में एक दो नहीं आठ खा लीं . पेट इतना भर गया कि मेन कोर्स की गुंजाइश नहीं बची थी . धीरे धीरे  मेरा पेट फूलना शुरू हो गया , रिक्शा पकड़ी और घर वापस आ गया  .

घर में आ कर सीधे सोफ़े में धँस गया . पेट की यह हालत ऐसी लग रही थी कि जैसे फूल कर ग़ुब्बारा बन गया है और कभी भी फट जाएगा. माता जी को जल्द ही समझ में आ गया कि मैं कहीं से भांग  पी कर आ गया हूँ , उन्होंने झट से इमली का पानी बनाया और मुझे पिला दिया . घंटे भर में मुझे एहसास होने लगा कि जैसे ग़ुब्बारे की तरह फूला हुआ पेट वापस अपनी  मूल स्थिति में लौटने लगा है . उसके बाद गहरी नींद आ गयी, १५-१६ घंटे में जा कर उठा . बाद में होली पार्टी के होस्ट मित्र को फ़ोन करने पर पता लगा कि ठंडाई  में नहीं वरन टिक्कियों के साथ परोसी गयी हरी चटनी में भांग मिली हुई थी ! 

भांग के बारे में एक क़िस्सा मेरे मित्र देव मणि  ने सुनाया था , वे और उनके कुछ साथी अपने गाँव में आए किसी पड़ोसी के मेहमान को बस में बिठाने के लिए निकट के क़स्बे में गए थे , मेहमान ने वहीं हलवाई की दुकान से खोए की बर्फ़ी ख़रीदी , उसमें भांग का सूखा पाउडर मिलाया और यह बर्फ़ी उन सब को खिलाई . वापस गाँव आते समय मेरे मित्र को लगा एक टांग लम्बी और दूसरी छोटी हो गयी है , बड़ी मुश्किल से घिसटते घिसटते वापसी का चार  किलोमीटर का सफ़र तय किया. घर में आ के अपनी यह परेशानी पिता जी को बताई , हावभाव और सुनी कहानी से पिताजी को मामला समझ में आ गया . उन्हें अरहर की दाल का उबला  हुआ पानी पिलाया , पानी पीते ही उल्टी हुई और देव को लगा दोनों टांगों की लम्बाई बराबर हो गयी है ! 

सूरज जी के साथ घटित अहमदाबाद का एक क़िस्सा इस से भी रोचक है  , वे होली पर अपने एक मित्र के यहाँ खाने पर गए , वहाँ अच्छी बादाम और केशर युक्त ठंडाई थी जिसमें भांग भी मिली हुई थी . सूरज जी ने चार पाँच गिलास यह  ठंडाई स्वाद स्वाद में पी ली . खाने के घंटे भर बाद उन्हें भांग का नशा चढ़ना शुरू हो गया . उनके मित्र ने उनकी स्थिति देख कर अपने बेटे से कहा कि उन्हें घर छोड़ आए . सूरज जी से स्कूटर पर बैठा नहीं जाए उन्हें लग रहा था कि स्कूटर की सीट अचानक बहुत ऊँची हो गयी है और वे टांग उठा कर कोशिश कर रहे थे लेकिन बैठ नहीं पा रहे थे  , उनके इन असफल प्रयासों  को देख कर पड़ोस में खड़े एक सज्जन ने उन्हें सहारा दे कर स्कूटर पर बिठाया . अब सूरज जी को समय भ्रम होने लगा उन्हें ऐसा लगने लगा कि उनके मित्र का बेटा उनके साथ भद्दा मजाक कर रहा है और उन्हें परेशान करने के लिए पूरे शहर का चक्कर लगा रहा है . राम राम करके उन्हें अपना घर दिखी ड गया तो जान में जान आयी . सूरज जी की जेब से चाबी निकाल कर मित्र के बेटे ने उनके घर का दरवाज़ा खोला , उन्हें बेड  पर लिटा कर ही वापस गया . नींद अच्छी आयी , पूरे डेढ़ दिन सोने के बाद आँख खुली ! 

भांग का सेवन करने के बाद लोगों को होने वाले ऐसे ही कितने अनुभव आपको अपने इर्द गिर्द मिल जाएँगे , इसी लिए ज़्यादातर लोग एक आध बार के ऐसे विकट अनुभव के बाद भांग से तौबा कर लेते हैं .

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