Hindi Ghazal मैं अगर .........

मैं अगर 

मैं अगर सच देखना चाहूँ नहीं 

मेरी आँखों का भला क्या दोष है 


जिस तरह बदले हुए हालात हैं 

आप  मानें या  मानें रोष है 


आदमी को आदमी से बाँटना 

आप ही बतलाइए क्या सोच है ? 


कारवाँ खुद ही बहुत आगे बढ़ेगा 

इन युवाओं के हृदय में जोश है 


वायदे करना  मुकरना आदतों में है शुमार 

उसकी नीयत में कहीं तो खोट है 


उसको लगता है कोई उसको देखेगा नहीं

वो भरम में है कि वो तो पर्दगी की ओट है 


जो नशा सत्ता में है बोतलों में है कहाँ 

जिसको मिल जाए वही मदहोश है 



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