Hindi Satire दोस्ती के आंसू

दोस्ती के आंसू 

जब भी स्वाद की बात चलती है तो बेसाख़्ता मुँह में पानी आ जाता है . स्वाद के पाँच मुख्य अवयव होते हैं : खट्टा, मीठा , तीखा , चरपरा और कड़वा. इन्ही के जोड़ तोड़ से से स्वाद की सैकड़ों हज़ार क़िस्में तैयार होती हैं . दिल्ली में घंटेवाले की जलेबी , बरेली में किप्पस का समोसा , हज़रतगंज लखनऊ की टोकरी चाट , ताज होटल के पीछे बड़े मियाँ की बिरयानी  , लखनऊ में टूँडे के कबाब , बॉम्बे सेंट्रल में सरदार की पाव भाजी , मेरठ में बेगमपुल की ग़ज़क , मुरादाबाद में बाबू राम की इमरती , मक्डोनल्ड का बर्गर, स्टॉरबक्स की काफ़ी ये वे चंद स्वाद हैं जो आपके जहां में बस जाते हैं . मुझे लगता है जब आप लम्बे समय तक किसी चीज़ का स्वाद याद रख पाते हैं तो निश्चित उसकी कन्सिस्टेन्सी  और उसके इंग्रीडीयंट्स का अनुपात बड़ी वजह होती है . 

यह भी सच है कि स्वाद का विकास एक लम्बे समय के बाद परिपक्व होता है . अपनी माँ के हाथ का बना स्टफ़ पराठे का स्वाद बीबी मेहनत करके भी रि-क्रिएट नहीं कर पाती है.

विभिन्न क्षेत्रों , अंचलों और देशों के लोगों को संतुष्टि तभी हो पाती है जब उनकी ज़बान पे चढ़े स्वाद  का भोजन मिल जाए . एक वो भी ज़माना था जब विदेशों में देसी खाने की तलाश बहुत बड़ी चुनौती हुआ करती थी . अब तो सिंगापुर, बैंकाक, हांगकाँग , लंदन, पेरिस , न्यूयार्क कहीं भी चले जाएँ आप को दोसा, इडली से लेकर क़िस्म क़िस्म का देसी खाना मिल जाएगा. 

एक बार हुआ यूँ कि एक अमेरिका से आए मित्र को मैंने डिनर पर आमंत्रित किया हुआ था . पत्नी उनके आगमन को ले कर ख़ासी उत्साहित थी . उसने पूरी डाइनिंग टेबल विभिन्न व्यंजनों से सजा दी थी . मित्र भी अपने सम्मान में परोसे गए व्यंजनों को देख कर अभिभूत हो गए . खना शुरू हुआ , मित्र की आँखों से अश्रु धारा प्रवाहित होती रही . पत्नी ने पूछा तो कहने लगे मैं बहुत खुश हूँ , ये ख़ुशी के आंसू हैं . पत्नी गदगद हो गयी. 

बाद में हमारे के कामन मित्र के माध्यम से पता चला वो अमेरिकी मित्र हमारी सब्ज़ियों और दही भल्ले में डाली गयी मिर्चों को बर्दाश्त नहीं कर सके थे और जिन्हें मेरी पत्नी ख़ुशी की अश्रुधारा समझ रही थीं वह दरअसल मिर्चों के तीखेपन के कारण निकल रहे  थे! जब दो वर्ष बाद मुझे इन अमेरिकी मित्र के घर खाना खाने का अवसर मिला , वह खाना बिल्कुल ब्लैंड था यानी न कोई मिर्च न ही मसाल था. अपना हाल उस खाने को ख़ा कर कुछ ऐसा हो रहा था कि निगलना भारी पड़ रहा था.

अब तो यह हाल है कि किसी भी अतिथि को भोजन पर आमंत्रित करने से पूर्व मिर्च मसाले के प्रेफ़्रेन्स को ठोक बजा कर पूछ लेते हैं . 

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