Hindi Satire : संस्कारी दामाद

संस्कारी दामाद 
हमारे मित्र शर्मा जी के लिए उनके माता पिता उनके लिए एक अच्छा मैच तलाशने में जुटे हुए थे , लेकिन कभी कोई लड़की शर्मा जी को पसंद आती तो लड़की ना पसंद कर देती , कोई लड़की उन्हें पसंद करती तो शर्मा जी को पसंद नहीं आती . फिर अचानक एक ऐसा मैच सामने आया शर्मा जी को पहली नज़र में लड़की भा गयी और लड़की को शर्मा जी . लेकिन विवाह के आड़े एक छोटी सी चुनौती आ गयी , लड़की का परिवार बेहद संस्कारी था , वे ऐसे लड़के की तलाश में थे जो उन्ही की तरह संस्कारी हो , न मीट खाता हो न ही दारू पीता हो . शर्मा जी ने लड़की वालों के सामने ‘आई शपथ’ कह कर अपने आप को सौ टका संस्कारी बता दिया . बस लड़की के पक्ष के लोग उनकी इस अदा पर क़ुर्बान हो गए, आनन फ़ानन में मुहूर्त निकलवाया गया और शादी की तारीख़ पक्की हो गयी .
शर्मा जी के सभी  मित्र उन्हीं की तरह पूरी तरह ग़ैर-संस्कारी थे . इसलिए शर्मा जी ने अपनी शादी में एक भी मित्र आमंत्रित नहीं किया , हाँ , शादी की खबर को सेलिब्रेट करने के लिए हम सब को खंडाला के पास एक रिज़ॉर्ट में ज़बरदस्त पार्टी दी , जिसके लिए ख़ास एयरपोर्ट की ड्यूटी फ़्री शॉप से जुगाड़ करके स्कॉच की बारह बोतल मँगवाई थीं . इसलिए किसी भी मित्र को उनकी शादी का निमंत्रण न पा कर कोई दुःख नहीं हुआ , क्योंकि सब को शर्मा जी की होने वाली ससुराल की संस्कारी पृष्ठभूमि का पता चल चुका था, ऐसी ड्राई जगह वैसे भी भला कौन जाता. 
शर्मा जी की शादी का कुछ कुछ ऐसा शिड्यूल था कि बारात वापस आने के अगले दिन उनके यहाँ संस्कारी क़िस्म का रिसेप्शन रखा गया था , जिसके लिए बधू की बहनें और भाई सभी आए थे , वापसी में वे लोग वधू को विदा कर कर ले गए थे. अब बारी शर्मा जी की थी , शर्मा जी अपनी पत्नी को ससुराल लिवाने के लिए गए , साले सालियों का इसरार था कि शर्मा जी को कम से कम छै दिन उधर रुकना होगा . दिन भर साले सालियों के बीच शर्मा जी घिरे रहते थे , सास जी चुन चुन कर बेहतरीन से बेहतरीन वेज डिशेज़ बनाने और जमाई को अपने सामने बैठ कर खिलाने में लगी रहतीं . न नान-वेज न सिगरेट ना ही दारू,  शर्मा जी उस क्षण को कोस रहे थे जब उन्होंने शादी की ख़ातिर अपने आप को संस्कारी घोषित किया था . ससुराल में उनका यह पाँचवाँ दिन हो चुका था , दारू , सिगरेट और नान-वेज की बड़ी तलब लग रही थी . एक आइडिया उनके दिमाग़ में ट्यूब लाइट की तरह कौंधा , बस उन्होंने अपनी सासु माँ को बताया कि पेट अपसेट है आज डिनर स्किप करेंगे और थोड़ा टहलने जाएँगे . सासु माँ सुनते ही नींबू, काला नमक , काला जीरा युक्त जलजीरा बना लाईं. शर्मा जी ने जलजीरा  पिया और चुपचाप बिना किसी से कहे सुने घूमने निकल लिए. ससुराल से मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ही उन्हें एक फ़ाइन डाइनिंग बार दिखायी दिया , शर्मा जी की बाछें खिल गयीं . आनन फ़ानन में बार में प्रवेश किया, मामला ससुराल के शहर का था इसलिए शर्मा जी ने तय किया सबसे आख़िर के स्मोकिंग ज़ोन वाले केबिन में बैठा जाए . सबसे पहले शर्मा जी ने लगातार दो सिगरेटें पी कर पाँच दिनों की बोरियत को दूर किया , पटियाला पेग स्कॉच का ऑर्डर दिया. साथ में साइड दोष में चिकेन ६९ और फ़िश फ़िंगर रोल मँगवाए. उस दिन पता लगा अगर कोई मनपसंद चीज़ कई दिनों के बाद मिले तो उसका क्या आनंद होता है . 
बस खाने पीने के इस अद्भुत सुख का आनंद उठा कर शर्मा जी केबिन के बाहर निकले तो सामने देख कर होश उड़ गए . सामने वाले केबिन से उनके ससुरश्री निकल रहे थे . काटो तो खून नहीं , ससुर जी की भी वही हालात थी पर बुजुर्ग तो बुजुर्ग होते हैं , पहल उन्ही को करनी पड़ती है आगे बढ़ कर दामाद को गले लगा लिया , उनके मुख से भी स्कॉच और फ़िश रोल की महक आ रही थी. गले मिलते ही दोनों के संस्कार भी मिल गए . 

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