प्यार में कश्ती की तरह
मेरा वजूद इक कश्ती की तरह प्यार में बहता है
कभी डूबता है कभी उबरता है कभी ठहरता है
अजीब पशोपेश है
गुमसुम रहें , उफ़ भी न करें और ज़बाँ खुल ना सके
प्यार मोहब्बत में सुनते हैं अब भी यही होता है
कितना मुश्किल है किसी प्यार का परवाज पे चढ़ना
खुद को लोबान बनाया तो कहीं प्यार मेरा महका है
वो क्या सोच के मेरी तलाश में निकला था प्रदीप
अब देख के हैरान है उसको जो दिल में रहता है
प्यार करने से कहीं दुश्वार उसे इजहार किया जाना
बीत जाते है सावन कितने तब जाके कोई कहता है
Comments
Post a Comment