Hindi Satire : जैन साहब की ऐतिहासिक साइकिल
जैन साहब की ऐतिहासिक साइकिल
एक जमाने में हमारे बड़े करीबी मित्र हुआ करते थे डा महिपाल जैन , उनके क़िस्सों को लेकर एक पूरा शोध प्रबंध लिखाजा सकता है लेकिन आज का हमारा फ़ोकस केवल उनकी साइकिल पर है .
उस दौर में जब हमारे तक़रीबन सारे मित्रों ने स्कूटर या फिर कार ख़रीद ली थी जैन साहब साइकिल पर ही चला करते थे . जिन दिनों का क़िस्सा बता रहा हूँ , उनकी साइकिल यही कोई पंद्रह साल पुरानी हो चुकी थी . फिर भी जैन साहब किसीपुरानी महबूबा की तरह उसकी मोहब्बत में गिरफ़्तार थे और उसकी जगह किसी नई साइकिल को देने के लिए तैयार नहींथे . साइकिल जैन साहब के घर के बाहर दिन रात बिना ताले के खड़ी रहा करती थी .
एक दिन का क़िस्सा है , हम जैन साहब के यहाँ कुछ पुस्तकें देखने गए थे , जैन साहब की बैठक में पुस्तकें ही पुस्तकें थीं , उन के बीच बैठने की जगह बनानी पड़ा करती थी , एक कोने में बान की चारपाई बिछी हुई थी जिसके नीचे भी पुस्तकेंजमा कर रखी थीं , नीचे रखी पुस्तकों से बान की चारपाई पर भी जैन साहब तख़्त का आनंद उठाया करते थे .
हुआ यूँ , जब हम पुस्तकें ले कर जैन साहब के घर से बाहर निकले, देखा स्कूटर का पंक्चर हो चुका था , पंक्चर बनानेवाला लंच करने गया हुआ था . जैन साहब ने हमें सुझाव दिया कि हम स्कूटर वहाँ छोड़ दें और उनकी साइकिल से घर चलेजाएँ . पंक्चर वाला पंक्चर बना कर हमारा स्कूटर हमारे घर छोड़ देगा और जैन साहब की साइकिल वापस ले आएगा . बात हमें जंच गयी हमने स्कूटर वहीं छोड़ा और जैन साहब की साइकिल लेकर घर की ओर रवाना हो गए . कुछ ही मीटरपैडल मार कर हमें एहसास हुआ कि हमें साइकिल चलाने में इतना दम लगाना पड़ रहा था जैसे किसी पहाड़ी पर चढ़ रहेहों , हमें समझ नहीं आ रहा था कि जैन साहब इसे घर से ऑफ़िस रोज़ाना चार किमी कैसे चलाते होंगे . राम राम करके हमकिसी तरह कभी पैदल घसीटते घसीटते घर पहुँचे. शाम को हमारा स्कूटर ठीक हो कर आ गया और जैन साहब कीसाइकिल मैकेनिक वापस ले गया.
एक दिन क्या देखता हूँ , जैन साहब रिक्शा में बैठ कर ऑफ़िस आ रहे थे , पता चला उनकी साइकिल घर के बाहर सेचोरी हो गयी थी , जैन साहब उसकी थाने में एफआइआर करवा के आ रहे थे . तीन दिन जैन साहब रिक्शा पर ऑफ़िसआते रहे. हम सब मित्र उन्हें इन्हें एक साइकिल की दुकान पर ले कर गए की इसी बहाने वे एक नई साइकिल ले लें . एकसाइकिल उन्होंने शॉर्ट लिस्ट कर भी ली थी . चौथे दिन देखा जैन साहब अपनी पुरानी महबूबा पर सवारी करते हुए आफिसआ रहे थे .
पता चला चोर वापस जैन साहब के घर के सामने उनकी साइकिल छोड़ गया था . साइकिल के केरियर पर एक चिट्ठी औरपचास रुपए का नोट बांध कर गया था , लिखा था , इसकी मरम्मत करवा लेना पता नहीं इस ल
आने वाले कई और बरस तक जैन साहब का इसी साइकिल पर आना जाना जारी रहा .
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