Hindi Poetry : क़्रिसमस के बाद की सुबह

क्रिसमस के बाद की सुबह 

मेरा मन उड़ना चाहता है पक्षी की तरह 

उन्मुक्त जिधर मैं चाहूँ 

कभी इस मुँडेर पे तो कभी उस मुँडेर पे . 

कुछ पल सुस्ताना भी चाहता है 

किसी मुँडेर पे भले वो मंदिर की हो , अग्यारी की 

किसी चर्च या फिर मस्जिद की .


तुम्हें पता है मेरे लिए 

तुम्हारे द्वारा अपनाए गए धर्म ,

उस धर्म से जुड़े पर्व और रीति रिवाज 

रोज़ आनंदित होने का एक बड़ा कारण हैं .

पर यह भी सच है 

तुम्हें दूसरों के पर्व और उपासना विधि से 

बड़ी तकलीफ़ होती है ,

तुममें से कुछ तो उससे नफ़रत भी करते हैं .


तुम दिन रात अपनी तरह के  

पूजा अर्चना में तल्लीन रहते हो 

लेकिन तुम्हें क्या लगता है तुम्हारे देवता 

दूसरों के प्रति  तुम्हारे नफ़रती सोच के लिए 

तुम पर पुष्पों की वर्षा करते होंगे .


देवता तो देवता हैं 

वे किसी ख़ास मजहब की जागीर नहीं हैं 

सबको हक़ है उन्हें पूजने का 

जैसे भी जो चाहे

एक बात ओर समझ लो 

देवता आसमान में रहते हैं


तुम क्या कभी किसी पहाड़ के शिखर पर चढ़े हो ?

वहाँ पहुँचने का केवल एक रास्ता नहीं होता 

तुम अपनी मरजी वाला रास्ता पकड़ सकते हो ,

कोई रास्ता सीधा , कोई ऊबड़ खाबड़ तो कोई पथरीला , 

लेकिन अगर वो ऊपर की तरफ़ जा रहा है 

तुम मज़े से शिखर तक पहुँच सकते हो .

वही जो तुम्हारे विश्वास का उत्कर्ष है . 


अतीत बताता है ज़्यादातर लोग 

अपने गंतव्य पर नहीं 

बस रास्ते पर फ़ोकस रहे हैं ,

यहीं से झगड़े की शुरुआत हुई है 

इसीलिए इतिहास के पन्ने खून में सने हुए हैं . 

इतिहास से सीखो तो 

तुम बेहतर इंसान बन सकते हो .

तुम अपने मन को पक्षी बना लो 

उसे उड़ने के लिए अंतरिक्ष का विस्तार दे दो 

जो मत मतांतर से कहीं परे है . 

                    प्रदीप गुप्ता 



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