हिंदी ग़ज़ल : मैं मानव हूँ
मैं मानव हूँ
एक नई सुबह का आग़ाज़ हूँ
ज़िंदगी जीने का अन्दाज़ हूँ
हौंसला रहता मेरा बुलंदी में
आसमानों से बड़ी परवाज़ हूँ
यूँ तो रहता मौन ही मैं दोस्तों
छेड़ के देखो सुरीला साज हूँ
मुझसे चाहे दूर हो के देख लो
मैं तुम्हारे सोच का एहसास हूँ
जो न बुझ पाये आसानी से कभी
युग युगांतर से भटकती प्यास हूँ
- Pradeep Gupta
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