संकट में मादरे ज़बान : सिंगापोर की दास्तान
संकट में अपनी मादरेज़बान : सिंगापोर की दास्तान
हाल ही में इकानमिस्ट में एक लेख पढ़ा जिस से पता लगा कि वहाँ पुराने जमाने में बोली जाने वाली ज़बान तमिल, मलयऔर मैंडरिन को अपने अस्तित्व के लिए संकट पैदा हो गया है . संकट की वजह वहाँ 1987 में अपनायी गयी शिक्षा नीति है, जिसमें विश्व की अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से आगे निकलने की होड़ में अंग्रेज़ी को पढ़ाई का माध्यम बना दियागया .
तीस से भी अधिक साल के बाद जवान हुई दो पीढ़ियाँ अपनी अपनी बोलियों को भूल चुकी हैं .
हालात यहाँ तक पहुँच चुकी है कि आज की पीढ़ी के युवा अपने दादा दादी, माना नानी के साथ संवाद करने की स्थिति मेंनहीं रह गए हैं . हुआ यूँ कि सैंडी नाम की चीनी मूल की युवती को जब पता चला कि उसकी दादी गम्भीर रूप से बीमार हैऔर वह उससे संवाद की स्थिति में नहीं है तो उसे अपनी मूल होकियाँ बोली सीखने के लिए LearnDialect.sg की मददलेनी पड़ी. LearnDialect.sg एक सामाजिक संस्था है जो सिंगापोर से वृद्ध नागरिकों के साथ संवाद करने में सहायता केलिए बनाई गई है .
जिस हिसाब से हमारे यहाँ भी शहर शहर में इंटरनेशनल स्कूल खुलते जा रहे हैं और हम सब के घरों में अंग्रेज़ी पैठ बना रहीहै , हो सकता है उस हिसाब से अपने यहाँ कमोबेश यही स्थिति हो जाने वाली है क्योंकि मैं देखता हूँ कि हमारी बिल्डिंग कीलिफ़्ट में बच्चे आपस में या फिर अपने माँ बाप से अंग्रेज़ी में ही बोलते दिखते हैं . पालिका द्वारा संचालित मराठी और अन्यभारतीय भाषाओं की पाठशाला में छात्र नहीं मिलते जबकि इंटेरनेशनल स्कूलों में ज़बरदस्त फ़ीस के बावजूद प्रवेश केलिए धकापेल है.
दिल पर हाथ रख कर बताइए क्या आपके घर में आपकी मातृभाषा में अख़बार आता है , अपनी भाषा में छपी कविता , कहानी या फिर उपन्यास कब से नहीं ख़रीदा है . शायद यही वजह है कि हर साल कई बोलियां मृतप्रायः हो जाने लगी हैंऔर भाषाओं पर संकट दिनों दिन घना होता जा रहा है . बोली और भाषा महज बातचीत का माध्यम नहीं हैं , उनमें संस्कृतिबसती है , तीज त्योहार , कला समाहित हैं गरज यह कि वे अपने साथ एक पूरा ईको सिस्टम लेकर चलती हैं .
अपनी भाषा के लिए केवल इतना ही कर लें , एक ठो अख़बार ख़रीदना शुरू करें , हर महीने कुछ पुस्तकें घर में लाएँ , यक़ीन मानिए आप अपनी भाषा को बचने के लिए बड़ा काम करेंगे .
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