Shakespeare : his two poems in Hindi
शेक्सपियर कवि भी थे
1564 में वारविकशायर के स्ट्रैडफ़ोर्ड अपॉन एवन में जन्मे विलियम शेक्सपियर को लोग एक बेहतरीन नाटककार के रूप में जानते हैं . उनके जीवन का बड़ा हिस्सा लंदन में टेम्स नदी के किनारे बने ग्लोब थिएटर में रंगमंच करते हुए और नाटक लिखते लिखते कटा . मैं इस थिएटर में उनके द्वारा लिखे नाटक देख चुका हूँ , वहाँ का अनुभव अद्भुत लगता है क्योंकि ये नाटक निरंतर 400 वर्षों से मंचित हो रहे हैं . यह कम लोगों को पता है कि उन्होंने कविताओं पर भी आज़माइश की है . प्रस्तुत है उनकी दो कविताओं का भावानुवाद , इनसे अंदाज़ा होगा कि उनकी कविता सार्वभौमिक है :
All the World's a Stage /यह संसार एक रंगमंच है
यह संसार एक रंगमंच है , सभी स्त्री पुरुष मात्र अभिनेता हैं
सबका अपना अपना आगमन और प्रस्थान नियत है
हर व्यक्ति अपने जीवन काल में निबाहता है बहुत सारी भूमिकाएँ
उसका काम बँटा है सात चरणों में .
पहला शिशु
जो अपनी दाई की गोद में रो रो कर दूध उलट देता है
और फिर वो स्कूली बच्चे का रुआंसा प्रलाप , बस्ता लटकाए हुए
सुबह का चमकता हुआ चेहरा ,
लेकिन घोंघे जैसी धीमी चाल
स्कूल न जाने का मन .
और फिर वो प्रेमी जो
प्रियतमा की भाव भंगिमा के लिए प्रेम गीत को सुनकर
तेज तेज श्वांस भरता है
और फिर एक सैनिक जिसकी दाढ़ी
तेंदुए जैसी दिखती है
वो नौकरी के प्रारम्भ में खाई विचित्र क़िस्म की शपथों और स्वाभिमान के लिए लड़ने को तत्पर रहता है
बुलबुले सी इज्जत की तलाश में
चाहे भले ही वो तोप के मुंह में ही हो .
और फिर वो न्यायाधीश
जिसकी तोंद फूली रहती है मानो मोटा ताजा मुर्गा हो
और खास ढंग से कटी हुई दाढ़ी
गंभीर आँखें , पैनी बुद्धि ,
उद्धरणों के साथ
वो अपने निर्णय देता है .
उम्र का छठा काल बदलता है
ढीला ढाला सलवट पड़ा पजामा
नाक पे चश्मा , और जेब में एक बटुआ
और उसमें सहेज कर रखी जुराबें , जो बहुत चौड़ी थी
उसके दुबले पतले पैरों के लिए अब बहुत ढीली ढाली लगती हैं , और उसकी आवाज़ का मर्दानापन अब बच्चे की आवाज़ में तब्दील हो चला है बच्चे की तीखी पैनी आवाज में ,
ऐसा लगता है जैसे सीटी बज रही हो.
और अब अंतिम दृश्य
जीवन की कहानी का पटाक्षेप
उसका मानो दूसरा बचपन और होने न होने की स्थिति
दंतहीन , चक्षु हीन , स्वाद हीन , सर्वस्व हीन .
My mistress' eyes are nothing like the sun/ मेरी प्रेयसी की आँखें
मेरी प्रेयसी की आँखें कहीं से भी नहीं लगती हैं सूरज की तरह,
और उसके होंठ कतई नहीं हैं लाल मूँगे की तरह,
बर्फ़ की श्वेत चादर की भाँति नहीं हैं उसके गेहुए वक्ष,
उसके केश हैं गुँथी हुए काली रस्सियों की तरह ।
मैंने देखा है लाल और सफ़ेद गुलाबों को दमिश्क होते हुए,
पर सच कहूँ तो वह रँग कहीं भी उसके गालों पर है ही नहीं,
यह सच है कि कुछ इतर कर देते हैं जीवन का हर कण सुगन्धित,
परन्तु उन इत्रों की एक बूँद भी मेरी प्रेयसी की साँसों में नहीं ।
उसकी हर बात घोलती है मेरे कानों में अमृत, किन्तु,
मैं जानता हूँ कि उसकी बोली में कहीं से भी महान सँगीत नहीं बजता,
स्वीकारता हूँ कि मैंने किसी देवी को साक्षात चलते हुए
हुए नहीं देखा है
पर मैंने देखा है अपनी प्रेयसी को सड़क पर डग भरते हुए ।
सुनो भाई क्यों न समझूँ मैं कि मेरा प्रेम है सर्वथा दुर्लभ ,
मेरा प्रेम जीवन्त सांस लेता है इन झूठी उपमाओं से परे !
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