कुछ अच्छा साहित्य भी पढ़ें Robert Louis Stevenson & Beauty of Scotland

वट्सअप ज्ञान से इतर भी कुछ पढ़ने की कोशिश करें 

हिंदी के कवियों में एक सामान्य बीमारी है , अच्छा साहित्य पढ़ने से दूरी और दूसरों को अपनी कविताएँ सुनाने का उतावलापन, अब फ़ेसबुक  ने कवियों की प्रचंड आर्मी तैय्यार कर दी है , रोज़ाना अनगिनित कवि लाइव फ़ेसबुक पर दृष्टिगोचर होते रहते हैं . 
अच्छा लिखने के लिए ज़रूरी है कि नियमित रूप से कुछ अच्छा पढ़ा भी जाय. हालात  ऐसे हैं कि हिंदी भाषा जिसके बोलने वाले करोड़ों के तादाद में हैं , लेकिन दस हज़ार  से ऊपर की प्रसार संख्या वाली हिंदी पत्रिकाएँ उँगली पर गिनी जा सकती हैं. जहां समाचार पत्र तो केवल विज्ञापनों के बीच समाचार  छापते हैं उनमें भी ज़्यादातर प्रायोजित होते हैं तो ऐसे में कविताओं या कहानियों के लिए जगह ही नहीं बचती है . फिर अच्छा साहित्य कहाँ से मिलेगा , पुरानी पत्रिकाओं और जाने माने लेखकों और कवियों की  किताबों में उसे ढूँढना पड़ेगा. 
पिछले दस दिनों से मैं  स्कॉटलैंड के उपन्यासकार और कवि रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन  की रचनाएँ वापस पढ़ रहा हूँ . दरअसल पहली बार मैंने उनकी रचनाओँ को  अपने अंग्रेज़ी साहित्य के पाठ्यक्रम में 1974 में पढ़ा था उस समय मैं उस परिवेश से परिचित नहीं था इसलिए वो रस नहीं आया जो इसमें समाहित था . बहुत बाद में मुझे स्कॉटलैंड के आंचलिक परिवेश में घूमने फिरने  और रहने का अवसर मिला तब अंदाज़ा लगा कि रॉबर्ट ने उस इलाक़े की सौंदर्य सुषमा को समेटा है. रॉबर्ट स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबरा से लेकर इस छोटे मगर खूबसूरत प्रदेश के आंचलिक परिवेश में 1880 से घूमें हैं और उसे जिया है . रॉबर्ट ने कविताओं के अलावा ट्रेज़र आयलंड और डाक्टर जेकल एंड मिस्टर हाइड जैसे उपन्यास भी लिखे जो 26 से भी अधिक भाषाओं में अनूदित किए गए .



एडिनबरा के राइटर म्यूजियम में रॉबर्ट से सम्बंधित काफ़ी रोचक सामग्री आज भी सहेज कर रखी गयी है . 
रॉबर्ट की दो रचनाएँ प्रस्तुत हैं :

झूला 
आप झूले पर बैठे हुए 
हवा में झूलते झूलते 
नीला आकाश छूना चाहते हैं 
ओह, मुझे लगता है कि यह सबसे मज़ेदार बात है 
कभी कोई बच्चा कर सकता है! 
हवा में और दीवार से और ऊँचे , 
मैं देख सकता हूं, 
नदी की विशालता, 
पेड़ और चारागाह में चरते जानवर. 
बगीचे की हरियाली , 
छत पर पड़ी भूरी खपरैल 
झोंटा लेकर मैं 
हवा में फिर से उड़ता हूं, 
ऊपर और ऊपर!

प्यार क्या है 
आज तुम्हारे बिना हमारा,
कितना शान्त अकेला घर है।
नये-पुराने मित्रवृन्द के लिए
प्रशंसा के कुछ स्वर हैं।

सुन्दर और युवा मित्रों के,
लिए बना है माह दिसम्बर।
किन्तु मई का मास अलग है,
छिपा अनुग्रह इसमें सुखकर।

पेरिस का तो हरा रंग है,
नीले रंग का मेरा अम्बर।
जैसा पाया वही लिखा है,
नहीं किया है कुछ आडम्बर।

दूर बहुत है ऊँची चोटी,
मुझको करती हैं आकर्षित,।
कभी न विस्मृत कर पाऊँगा,
अपने करता भाव समर्पित

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