Hindi Poetry : नए प्रतिमान
नए नए प्रतिमान बनाओ
नए नए प्रतिमान बनाओ
लेकिन पिछले नहीं गिराओ
रुको नहीं अब आगे जाओ
संग साथ सब को ले जाओ
पीछे रहा अगर कोई छूटा
फिर होगा हर दावा झूठा
बातों से यूँ मत भरमाओ
सही स्थिति ज़रा बताओ
कहाँ फँसी है अपनी गाड़ी
क्यों आयी है विपदा भारी
चर्चा में सबको ले आओ
सच बोलो कुछ नहीं छिपाओ
रोज़गार क्यों नहीं बचे हैं
कल कारख़ाने बंद पड़े हैं
श्रमिक बना हुआ है याचक
आनंदित बस कथा का वाचक
कृषक हुआ कितना बेहाल
कौन ले रहा उसका हाल
भरे पड़े हैं खेत खलिहान
नहीं मिले क्यों वाजिब दाम
ग्राहक को तो मिलता महँगा
फिर किस का है चमका धंधा
वो ही विकसित हुए हैं बंदे
खींच रहे हैं सब के धंधे
संकट में अब दिखती है हीर
कौन हरे अब जन की पीर
विषम व्यथा मिटानी होगी
जन को राह बनानी होगी .
Comments
Post a Comment