Hindi Ghazal तुझसे मिल कर
Ek gazal sun kar batana kaisee lagi
तुझसे मिल के ख़ुशनुमा सा लगे है मुझे
मिरा वजूद अब कहकशां सा लगे है मुझे
जिसके आग़ोश में लिपटा रहा बच्चे की तरह
वो शहर अब तो शहरे-गरिबां सा लगे है मुझे
जिसने धोखा ही दिया उम्र भर मुझको
आख़िरी वक्त में पशेमां सा लगे है मुझे
इन आँधियों ने ले लिया सब कुछ मुझ से
बस ये बूढ़ा शज़र निगेहवां सा लगे है मुझे
तुम यह कहते हो वो मिरा कातिल होगा
वो तो खुद से ही परिशां सा लगे है मुझे
इतना घूमा हूँ उसकी तलाश में बरसों
हर शहर अब तो शहरे निगारां सा लगे है मुझे
ये अपनी रौ में किधर आ गया हूँ प्रदीप
ये रास्ता तेरी यादों से रख़शां सा लगे है मुझे
कहकशां : आकाश गंगा
पशेमा : लज्जित शहरे गरीबां : परिचितों का शहर
निगेहवां : रक्षा करने वाला
परिशां : लज्जित शहरे निगारां : प्रेयसी का शहर
रख़शां : प्रकाशमान
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