Hindi Diwas हिंदी के बारे में मनोगत

आज हिंदी दिवस है , संयोग से इस बार यह पित्र-पक्ष में पड़ा है . मेरे बहुत सारे मित्र हिंदी भाषा को काव्य , कथा , वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों में मौलिक लेखन से समृद्ध करने में जुटे  हुए हैं उन्हें दिल से बधाई वहीं कुछ पेशेवर लोग इस दिन संस्थाओं से कार्यक्रम प्रायोजित करवा कर कवि सम्मेलन या पुरस्कार बाँट कर भाषा के प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं . 
भारत भिन्न भाषाओं से समृद्ध देश है , यह भी सच है कि ज़्यादा  संख्या हिंदी बोलने और समझने वालों की है इसलिए सम्पर्क भाषा के रूप में इसे आगे बढ़ाना चाहिए . लेकिन आप हर अहिंदी भाषी से तो अपेक्षा करें कि वह हिंदी सीख कर आप हिंदी भाषी परिवार में पले बढ़े लोगों से नौकरियों की प्रतियोगिता में मुक़ाबला करें पर आप हिंदी से इतर कोई दूसरी भारतीय भाषा न सीखें फिर परस्पर विश्वास कैसे बढ़ेगा ? यदि हर हिंदी भाषी जनपद में किसी एक अन्य भारतीय भाषा सिखाने और सीखने का सिलसिला शुरू किया जाता तो उसे सिखाने हिंदी इतर राज्यों के लोग हिंदी भाषी क्षेत्रों में आते और इस तरह एक सांस्कृतिक आदान प्रदान और परस्पर विश्वास का सिलसिला बढ़ता . ऐसा नहीं हुआ और इस कारण ग़ैर हिंदी भाषा भाषियों के रोष का शिकार मेरी मातृभाषा को होना पड़ता है . 
मुंबई में एक अरसे से रहने के कारण टूटी फूटी मराठी आ गयी है देश के बाहर अगर कोई मराठी बंधु मिल जाता है अपनी इस भाषा की सहभागिता के कारण मित्र बन जाता है. मराठी की भी समृद्ध साहित्यिक परम्परा रही है , मामा वरेरकर , कुसुमाग्रज, विष्णु भट्ट गोडसे के साहित्य से परिचय हुआ , संतों के अभंग का रस लिया. हम सभी हिंदी भाषा वासियों को कम से कम इस हिंदी दिवस से ही एक हिंदी इतर भारतीय भाषा सीखने का संकल्प लेना चाहिए. भाषा व्यक्ति से व्यक्ति के बीच संवाद और सांस्कृतिक आदान प्रदान  का पुल होना होना चाहिए न कि इसे एक राजनीतिक हथियार बनना चाहिए .


Comments

Popular posts from this blog

Is Kedli Mother of Idli : Tried To Find Out Answer In Indonesia

A Peep Into Life Of A Stand-up Comedian - Punit Pania

Searching Roots of Sir Elton John In Pinner ,London