Hindi Ghazal मैं और तुम
तुम्हारी बातों में क्यों ये इनकार रहता है
हमारी हर साँस में सिर्फ़ प्यार रहता है
सब की आँखों में बसा करते कितने सपने
मेरी आँखों को बस तेरा इंतज़ार रहता है
तुम न आओ भले ज़िद है तुम्हारी देखो
हमें तो तुम पे हमेशा ऐतबार रहता है
घर में रहता हूँ वक्त काटे नहीं कटता है
सफ़र में होता हूँ अजब सा क़रार रहता है
मुझ को लगता था आग इक़ तरफ़ा है
ख़बर यह है उधर वो भी बेक़रार रहता है
ये शहर ग़र तिरा है तो मिरा भी है प्रदीप
कितनी गलियों को मिरा इंतज़ार रहता है
प्यार कर ही लिया तो क्या आगा पीछा
ये वो सौदा है जिसमें नगद भी उधार रहता है
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