Hindi Ghazal: वो शख़्स ........
वो शख़्स भीड़ में अकेला सा लगे है मुझे
वो शख़्स भीड़ में तनहा सा लगे है मुझे
वो अपने आप से परेशां सा लगे है मुझे
जब कभी बैठ के यादों के दरीचे खोलूँ
ज़िंदगी एक कहकशां सा लगे है मुझे
न जाने कौन सा जादू चला दिया उसने
कभी वो दिल में मेहमां सा लगे है मुझे
पता नहीं किस दौर से गुज़र रहे हम लोग
हरेक लम्हा अब इम्तिहा सा लगे है मुझे
इस कदर लोग रंग बदल रहे हैं यारों
अब तो गिरगिट भी पशेमाँ सा लगे है मुझे
तलाश करने निकल पड़ा हूँ अपना वजूद
कभी जमीं तो कभी आसमाँ सा लगे है मुझे
क्या इलेक्शन क़रीब आ गए हैं प्रदीप
रहनुमा फिर से मेहरबां सा लगे है मुझे
बाक़सम झूठ बस झूठ बिक रहा अब तो
ना कोई सच का कदरदां ही दिखे है मुझे
प्रदीप गुप्ता
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