Hindi Ghazal : आदतों का डर
आफ़तों का डर
आफ़तों का अब मुझे कोई डर नहीं रहा
बारिशों में इस बार मिरा घर नहीं रहा
मंज़िल को खोजने चलते रहे थे हम
पाया जो तिरा साथ तो सफ़र नहीं रहा
देता था राहगीर को साया हरेक वक़त
आँधी गुज़र गयी वो शज़र नहीं रहा
आँचल में थक के जिसके सोता था चैन से
इन हादसों के बाद वो शहर नहीं रहा
ताक़त मिला करे थी मुझे माँ की डाँट से
उतना तो अब दुआ में असर नहीं रहा
जी भर के उसको देखा केवल एक दफ़ा
कोशिश तमाम कीं नशा उतर नहीं रहा
हर चंद कर लीं कोशिशें सब ने जगह जगह
कुछ तो है जो मिरा वजूद बिखर नहीं रहा
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