Hindi Ghazal मैं भले बोलूँ न बोलूँ
मैं भले बोलूँ न बोलूँ पर मेरा बोले ग़रूर
कितनी परतें मेरे मन की ये तो खोले है ज़रूर
जब ज़रा भी सोचता हो मेरे बारे में कभी
फूट पड़ता है कहीं से उसके चेहरे पे तो नूर
सादगी इतनी समायी उसके भीतर है कहीं
बोलने से पहले अपने शब्द तौले है ज़रूर
जो कहूँ उसमें अजब सी तल्खियाँ शामिल रहे
इतने धोखे खा चुका हूँ मेरा नहीं इसमें क़सूर
हर समय बस आप बोलें और मैं सुनता रहूँ
अब तो पानी चढ़ गया सर से ऊपर ऐ हुज़ूर
किस कदर हालात बिगड़े हैं जमाने के प्रदीप
आदमी बेबस है लेकिन खून खौले है ज़रूर
पास रह के भी बना लीं तुमने अपनी सरहदें
एक छत के नीचे रहते क्यों हुए तुम इतने दूर
@pradeep gupta
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