Hindi Ghazal : क्यों इतना सितम आदमी पे ढाते हो
क्यों इतना सितम आदमी पे ढाते हो
क्यों सितम आदमी पे ढ़ाते हो
इतनी नफ़रत कहाँ से लाते हो
कैसे रिश्ते बना लिए तुमने
कुछ न कहते न कुछ सुनाते हो
तार वीणा के झनझनाते हैं
जब कोई गीत गुनगुनाते हो
कतरा कतरा बिखरता जाता हूँ
मुझको जब बेरुख़ी दिखाते हो
सारा अवसाद गल गया पल में
इस कदर तुम जो मुस्कुराते हो
बेपनाह प्यार हो गया तुमको
बेवजह मुझपे हक़ जमाते हो
न दूर जाते हो न पास आते हो
जब भी जी चाहे रूठ जाते हो
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