Ek Ghazal Jo Ghazal Nahin Zindgi Ka Safa Hai
सबने देखा मेरा बारहा बिखरना देखा
क्या कभी फजाओं में महकना देखा ?
नहीं देखा मेरी जाँ तो फिर क्या देखा
जो परिंदों के साथ मेरा चहकना देखा
लोग बैठे रहे आँधियों में घर अपने
हमने आँधी के साथ में लड़ना सीखा
वो किताबें लिए लड़ते रहे आपस में
हमने सड़कों से शऊर सलीका सीखा
हम तो मौजों में कभी उतरे कभी डूबे
सबने किनारे पे अपना सफ़ीना देखा
ज़िन्दगी काट ली ग़ुरबत को ढोते ढोते
हमने जा के कभी काबा न मदीना देखा
दिल में सिमटे रहे दर्दों ग़म जमाने के
उस ने देखा मेरा बेसाख़्ता हँसना देखा
- प्रदीप गुप्ता

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