Hindi Poetry शहर कभी बूढ़े नहीं होते
शहर कभी बूढ़े नहीं होते
मेरे एक मित्र इन दिनों एकांतवास में हैं
इसलिए फ़ुरसत ही फ़ुरसत में हैं
कल स्काइप पर थे पूछने लगे
दुनिया का सबसे पुराना शहर कौन सा है
मैंने तत्काल ही जवाब दिया
बनारस
कहने लगे यार तुम पूरी दुनिया घूमते रहते हो
मुझे लगा तुम लन्दन, पेरिस या न्यू यॉर्क का नाम लोगे .
देखा अपना वाराणसी ही दुनिया का सबसे पुराना शहर है
मैंने सोचा इसका उत्तर उन्हें दे ही दूँ
शहर कभी पुराने या बूढ़े नहीं होते
शहर हमेशा जवान बने रहते हैं
शहर खोजते रहते हैं अपने आप को लगातार
क्योंकि इनमें बसती है
जन जीवन की धड़कन
इनमें बसती हैं सभ्यता और संस्कृति
जो केवल इतिहास का हिस्सा नहीं होती है
लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बन कर जीती है
शहरों की असली प्राण वायु वहाँ आने वाले लोग होते हैं
जो लौटते समय उसका हिस्सा बन कर पूरी दुनिया में उसे ले जाते हैं
यही नहीं शहरों की भाषा भी खोजती रहती है अपने आप को
कुछ आने वालों से सीखती है
कुछ जाने वालों के साथ चली जाती है
मुकुटधारी यहाँ के सिंहासन पर कुछ साल बैठते हैं
फिर यहाँ की मिट्टी बन जाते हैं
विस्मृत वे होते हैं
शहर तो फिर वापस अपनी रफ़्तार से चलने लगते हैं
शहर एक नशा भी हैं
एक बार आपको लग गए
तो फिर आप उसके सरूर में जीते हैं
शहर के सरूर में जीने वाले लोगों की तादाद बहुत है
बम्बई को ही ले लीजिए
कितने ही लोगों को और शहरों से बेहतर ज़िंदगी जीने के प्रस्ताव मिलते हैं
ज़्यादातर लोग ऐसे हैं उन पे असर ही नहीं होता
यहीं अपनी तंगहाली में इस शहर के सरूर में काट लेते हैं .
इसी लिए मैं कहता हूँ शहर कभी बूढ़े नहीं होते
क्योंकि वे अपने आप को लोगों के साथ ही
अपने आप को खोजने में लगे रहते हैं .
मेरे एक मित्र इन दिनों एकांतवास में हैं
इसलिए फ़ुरसत ही फ़ुरसत में हैं
कल स्काइप पर थे पूछने लगे
दुनिया का सबसे पुराना शहर कौन सा है
मैंने तत्काल ही जवाब दिया
बनारस
कहने लगे यार तुम पूरी दुनिया घूमते रहते हो
मुझे लगा तुम लन्दन, पेरिस या न्यू यॉर्क का नाम लोगे .
देखा अपना वाराणसी ही दुनिया का सबसे पुराना शहर है
मैंने सोचा इसका उत्तर उन्हें दे ही दूँ
शहर कभी पुराने या बूढ़े नहीं होते
शहर हमेशा जवान बने रहते हैं
शहर खोजते रहते हैं अपने आप को लगातार
क्योंकि इनमें बसती है
जन जीवन की धड़कन
इनमें बसती हैं सभ्यता और संस्कृति
जो केवल इतिहास का हिस्सा नहीं होती है
लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बन कर जीती है
शहरों की असली प्राण वायु वहाँ आने वाले लोग होते हैं
जो लौटते समय उसका हिस्सा बन कर पूरी दुनिया में उसे ले जाते हैं
यही नहीं शहरों की भाषा भी खोजती रहती है अपने आप को
कुछ आने वालों से सीखती है
कुछ जाने वालों के साथ चली जाती है
मुकुटधारी यहाँ के सिंहासन पर कुछ साल बैठते हैं
फिर यहाँ की मिट्टी बन जाते हैं
विस्मृत वे होते हैं
शहर तो फिर वापस अपनी रफ़्तार से चलने लगते हैं
शहर एक नशा भी हैं
एक बार आपको लग गए
तो फिर आप उसके सरूर में जीते हैं
शहर के सरूर में जीने वाले लोगों की तादाद बहुत है
बम्बई को ही ले लीजिए
कितने ही लोगों को और शहरों से बेहतर ज़िंदगी जीने के प्रस्ताव मिलते हैं
ज़्यादातर लोग ऐसे हैं उन पे असर ही नहीं होता
यहीं अपनी तंगहाली में इस शहर के सरूर में काट लेते हैं .
इसी लिए मैं कहता हूँ शहर कभी बूढ़े नहीं होते
क्योंकि वे अपने आप को लोगों के साथ ही
अपने आप को खोजने में लगे रहते हैं .

Comments
Post a Comment