Hindi Poetry : मैं आज का अख़बार नहीं हूँ .
मैं आज का अख़बार नहीं हूँ .
मैं आज का अख़बार नहीं हूँ
जो झूठ और नफ़रत का छौंक लगा कर
कल बासी हो जाता है
जिसे काम वाली बाई अगले दिन आ कर
घर के उस कोने में रख देती है
जिस तरफ़ घर वालों की निगाह शायद ही जाती हो .
मैं कोशिश में हूँ
कुछ ऐसा लिखूँ
जो आज ही नहीं कल भी सामयिक हो
उसमें किसान का सरोकार हो
मज़दूर का पसीना झलके
फ़ौजी की उद्दात देश भक्ति झलके
एक माँ का बच्चे के प्रति प्यार छलके
सच की आत्मा दिखाई दे
दबे कुचले की आवाज़ सुनाई दे
मैं जानता हूँ यह सब
जोखिम से भरा है
लेकिन अगर इतना जोखिम नहीं उठा सका
मेरी आत्मा ही मुझे माफ़ नहीं कर पाएगी
अपनी नज़रों में गिर जाऊँगा
और इंसान के लिए सबसे बड़ी सजा है
अपनी नज़र में गिर जाना.
- प्रदीप गुप्ता
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