Hindi Poetry : भीतर का दानव भीड़ को दंगाइयों में बदल रहा है .......

भीतर का दानव भीड़ को दंगाइयों में बदल रहा है  .......
लोग कहते हैं आदमी में देवत्व है
इसके बारे में तो मैं विश्वास पूर्वक नहीं बता सकता हूँ
लेकिन इन दिनों एक बात मुझे स्पष्ट हो चुकी है
पिछले कुछ वर्षों से
आदमी की नसों में धीरे धीरे
विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्म  के ज़रिए
नफ़रत का जो सुप्त ज़हर पहुँचाया जा रहा है
उसने जगा दिया है भीतर बैठे दानव को
यह दानव पहले ज़बान के ज़रिए बाहर निकलता है
चीखता है चिल्लाता है
सार्वजनिक विमर्श को घटिया बनाता है .
फिर धीरे धीरे भुजाओं पर भी सवार हो जाता है
और भोले भाले लोगों को भीड़ तंत्र में बदल देता है
एक ऐसी भीड़
जो पत्थर से लेकर पिस्टल और गन कुछ भी चला सकती है
शहर के शहर जला सकती है
बरसों के भाई-चारे को तार तार कर सकती है
किसी बेगुनाह आदमी की जान लेने को
जस्टिफ़ाई कर सकती है .
ज़रूरत है इस दानव से निपटने की ,
नहीं तो सभ्य  समाज
आदिम-युग में वापस चला जाएगा
अभी भी थोड़ा समय बचा है
रोकना ही होगा इस दानव को .
               - प्रदीप गुप्ता 

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