Hindi Poetry : प्यार भेलपूरी है
प्रेम की परिभाषा
प्रेम को समय समय पर विद्वानों ने अपने अपने तरीक़े से परिभाषित किया है
कुछ महा पुरुषों ने इसके लिये पोथियाँ लिख डाली हैं
पर मुझे लगता है प्रेम भेलपूरी है
जिसका सही सही स्वाद खा कर ही अनुभव किया जा सकता है
किसी पल मीठा लगता है
तो किसी क्षण इतना तीखा लगता है
कि आँख से आंसू निकल आते हैं
खाने वाला सोचता है अगली बार नहीं खाऊँगा
पर अगले ही ग्रास में ज़ायक़ा इतना अच्छा
कि इच्छा करे इसका सिलसिला कभी ख़त्म ही न हो
एक ही दोने में कितने रस छुपे हैं
कभी खट्टा खट्टा लगता है
कभी कुरकुरा तो कभी उबले आलू की तरह मुलायम
चाट मसाले का पुट
तो कभी पापड़ी की तरह क्रिस्पी
यही नहीं महंगाई के इस दौर में भी
इस के लिए बड़ी रक़म की ज़रूरत भी नहीं
चौपाटी पर आराम से चलते चलते आनंद लिया जा सकता है
जल्दी जल्दी खाएँगे गले में अटक जाता है
आराम से और शेयर करके इसका स्वाद और बढ़ जाता है .
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