Hindi Ghazal : दिल दरक गया
दिल दरक गया
कैसी घड़ी ये आयी दिल सहम गया
अपनों से चोट ख़ा के दिल दरक गया
बिन बात ही गयी थी वो शहर छोड़ के
कल जो नज़र आयी दिल लरज गया
घर से चले थे हम तो ख़ुशियों की खोज में
रिश्तों के मकड़जाल में दिल ऊलझ गया
हादसे मेरे लिए किसी मदरसे से कम नहीं
हर बार इनसे सीखता है दिल सबक़ नया
नफ़रत से लड़ने को नफ़रत रहे हो पाल
तुममें और जानवर में फिर क्या फ़रक रहा
- प्रदीप गुप्ता
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