सरपरस्ती : Hindi Poetry
सरपरस्ती
जब तक बाबूजी ज़िन्दा थे
पता नहीं क्यों मैं अपने आप को बहुत ताकतवर समझता था
उस समय सोचता था कोई भी झोल होगा
बाबूजी सम्भाल लेंगे
कोई बीमारी हो
किस डाक्टर को दिखाना है
आयुर्वेद की दवाई खानी है , होम्योपैथी लेनी है
या काढ़ा पीना है
अपना दिमाग़ नहीं लगाना पड़ता था
छोटी छोटी समस्याओं को वे चुटकी में हल कर देते थे
लेकिन उनकी सरपरस्ती ने मुझे काहिल बना दिया
मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से .
उनके देहावसान के बाद
धीरे धीरे मैंने अपनी ज़िंदगी का चार्ज लेना शुरू किया
कई सालों के बाद अब मैं अनुभव करता हूँ
मैं अपने आप निर्णय ले सकता हूँ .
पर सच बताऊँ,
मेरे जिन मित्रों के सर पर बुजुर्गों का साया नहीं था
ज़िंदगी की दौड़ में मैं उनसे पीछे रह गया
ऐसा भी नहीं उनके साथ सब कुछ ठीक हुआ करता था
वे कई मरतबा लड़खड़ाए , घिसटे, गिरे भी
पर उनका लड़खड़ाना , घिसटना , गिरना
तनाव , अवसाद
धीरे धीरे उनकी ताक़त में बदल गया
उन्होंने ज़िंदगी में जो कुछ हासिल किया है
उसकी चमक उनके चेहरे पर झलकती है .
-प्रदीप गुप्ता
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