Hindi Poetry : हाईवे पर पड़ा घायल आदमी
हाईवे पर पड़ा घायल आदमी.
कल हाईवे पर ड्राइव कर रहा था
दूर देखा एक आदमी एसयूवी की चपेट में आ गया
पता नहीं कैसे यह बंदा हाईवे पर आ गया था
शायद उसका बुरा वक़्त उसे खींच लाया था
ख़ून से सना वो आदमी तड़प रहा था
दूर तलक उसके ख़ून से लकीरें खिंच गयी थीं
एसयूवी वाला तो रुका ही नहीं
सीधे भाग गया था.
यह मानवीय समवेदना का संक्रमण काल है
इसलिए सैकड़ों वाहन गुजर गए
किसी ने रूकने की ज़हमत नहीं उठाई
अपना मन नहीं माना
शोल्डर पर गाड़ी लगाई
अकेले कुछ भी करना सम्भव नहीं था
इसलिए अपनी शर्ट उतार कर हिला हिला कर वाहनों को रोकने की कोशिश की
बमुश्किल तमाम एक कार रुकी
ड्राइव करने वाला पूछता है
यह हिंदू है या मुसलमान ?
मैंने उससे कहा,’रूक क्यों गए आदमी की और भी
क़िस्में हैं
पारसी , ईसाई , यहूदी , बौद्ध , सरदार
तो आप उसका मजहब देख कर फ़ैसला करेंगे
कि उसकी मदद करनी चाहिए?’
उसने सड़ा सा मुँह बनाया और आगे बढ़ गया
मैं मायूस होने ही लगा था
तभी उधर से सड़क मरम्मत करने वाला गैंग निकल रहा था
हाथ में बेलचे , कुदाल और फावड़े थे
बिना कुछ कहे सुने उन सबने ख़ून से लथपथ आदमी को उठाया
मेरी कार में लिटाया
उनमें से दो लोग साथ में बैठ गए
क़रीब के अस्पताल पहुँचे घायल को भरती कराया
मुझे पता नहीं घायल बच सका या नहीं
लेकिन इतना ज़रूर पता चल गया
मानवता बची हुई है
उन लोगों के बीच
जिनका मजहब केवल अपने और अपने परिवार का पेट पालना है .
कल हाईवे पर ड्राइव कर रहा था
दूर देखा एक आदमी एसयूवी की चपेट में आ गया
पता नहीं कैसे यह बंदा हाईवे पर आ गया था
शायद उसका बुरा वक़्त उसे खींच लाया था
ख़ून से सना वो आदमी तड़प रहा था
दूर तलक उसके ख़ून से लकीरें खिंच गयी थीं
एसयूवी वाला तो रुका ही नहीं
सीधे भाग गया था.
यह मानवीय समवेदना का संक्रमण काल है
इसलिए सैकड़ों वाहन गुजर गए
किसी ने रूकने की ज़हमत नहीं उठाई
अपना मन नहीं माना
शोल्डर पर गाड़ी लगाई
अकेले कुछ भी करना सम्भव नहीं था
इसलिए अपनी शर्ट उतार कर हिला हिला कर वाहनों को रोकने की कोशिश की
बमुश्किल तमाम एक कार रुकी
ड्राइव करने वाला पूछता है
यह हिंदू है या मुसलमान ?
मैंने उससे कहा,’रूक क्यों गए आदमी की और भी
क़िस्में हैं
पारसी , ईसाई , यहूदी , बौद्ध , सरदार
तो आप उसका मजहब देख कर फ़ैसला करेंगे
कि उसकी मदद करनी चाहिए?’
उसने सड़ा सा मुँह बनाया और आगे बढ़ गया
मैं मायूस होने ही लगा था
तभी उधर से सड़क मरम्मत करने वाला गैंग निकल रहा था
हाथ में बेलचे , कुदाल और फावड़े थे
बिना कुछ कहे सुने उन सबने ख़ून से लथपथ आदमी को उठाया
मेरी कार में लिटाया
उनमें से दो लोग साथ में बैठ गए
क़रीब के अस्पताल पहुँचे घायल को भरती कराया
मुझे पता नहीं घायल बच सका या नहीं
लेकिन इतना ज़रूर पता चल गया
मानवता बची हुई है
उन लोगों के बीच
जिनका मजहब केवल अपने और अपने परिवार का पेट पालना है .

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