Hindi Poetry : जंगलों की मौत
जंगलों की मौत पर अब शोक गीत नहीं लिखे जाते
इन दिनों जंगलों की मौत का सिलसिला चल रहा है
हरेक के लिए शोक गीत लिखना सम्भव नहीं है .
पहले इन शोक गीतों को सुन कर
लोगों की संवेदनाएँ जग जाती थीं
आँखों में पानी आ जाता था
कई लोग तो बाक़ायदा सड़क पर निकल आते थे.
कवि लिख कर करे भी तो क्या करे
अगर शोक गीत लिख भी दिया
तो उसे कौन छापेगा
धोखे से छप भी गया
तो उसे पढ़ने की फ़ुरसत किसे है
और धोखे से पढ़ लिया तो
ज़्यादा से ज़्यादा एक आध जन उस पर लाइक ठोक देंगे.
कोई भी जंगल आत्महत्या थोड़ी करता है
उसकी बाक़ायदा हत्या की जाती है
तिल तिल करके ऐसिड के इंजेक्शनों से
कई बार जब लोग चैन की नींद में सो रहे होते हैं
तो आग लगा कर.
रातों रात घना जंगल मरुस्थल में बदल जाता है
कभी चमचमाती इमारतों के लिए
तो कभी किसी रिज़ॉर्ट के लिए.
हाँ, जब सड़क पर ही नहीं घर के भीतर भी
साँस घुटने लगती है
अस्पतालों में बीमारों के लिए जगह नहीं बचती
वो नई पीढ़ी जिसने कुछ भी नहीं देखा
ज़िन्दगी और मौत के बीच में झूलने लगती है
तब अचानक उन मारे हुए जंगलों की सुध आती है
तब तक बहुत देर हो चुकी होती है .
शब्द और चित्र प्रदीप गुप्ता

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