Hindi Poem : क़लम
क़लम
कुछ दिनों से साहित्यकारों ने अपने क़लम डाल दिए हैं
या यों भी कह सकते हैं कि क़लम से काम लेना बंद कर दिया है
कुछ साल पहले जिनकी क़लम आग उगला करती थी
इन दिनों उससे धुआँ भी नहीं निकलता.
आप पूछेंगे अचानक यह कैसे हो गया?
इन दिनों साहित्यकारों ने
क़लम की जगह थाम लिए हैं मोबाइल
अब उँगलियाँ काग़ज़ की जगह फिसलती रहती हैं
नोट-पैड पर
अब ये उँगलियां शब्दों को आकार नहीं देतीं हैं
ये ढूँढती हैं किसी फ़ैक्टरी में गढ़े हुए शब्दों को
बस फिर दनादन अपने मित्रों की सूची को
ये गढ़े शब्द गोलियों की तरह दाग देती हैं .
अगर आप साहित्यकार हैं
सच बोलिएगा
आप घटनाक्रम को देख और सुन कर
कब से आपने अपना सिर नहीं खुजाया है
हैरान और परेशान नहीं हुये हैं
तो फिर आप भला क़लम क्यों उठाएँगे
बस आपकी उँगलियाँ वट्सअप पर
घूमती रहेंगी चुटकुले और अर्धसत्य खोजने और उन्हें
आगे बढ़ाने में .
- प्रदीप गुप्ता
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