Hindi Poetry कटे पेड़ों का बयान

कटे पेड़ों का बयान 
मी लॉर्ड, 
हम सज़ा के काबिल थे 
अपना गुनाह क़बूल करते हैं , 
अच्छा हुआ हम को रातों रात काट दिया 
इंसान की बस्ती में हमारा कोई काम नहीं है .
हम से शहर की तरक़्क़ी रूकती है 
हमारे रहते हुए भला कैसे बन सकेंगी अट्टालिकाएँ
कैसे हमारा शहर क्योटो, न्यू यॉर्क,  शिकागो की
स्काई लाइन से मुक़ाबला कर पाएगा 
हमारे रहते हुए भला यहाँ आधुनिक ट्रांसपोर्ट कैसे चल सकता है 
जो चिड़िएँ, कबूतर , क़व्वे हम पे बसेरा करते थे
हमारे बीच से गुजर कर गिलहरियाँ गुजरती थीं
क्या ज़रूरत है 
अब हमारे बीच रहने वाले लुप्तप्राय जीव जंतुओं की 
जब इस शहर का आदमी 
कीड़े मकोड़े की तरह खुद जीने लगा है . 
                        - प्रदीप गुप्ता 




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