Thoughts on Hindi Divas

भाषा का मुद्दा काफ़ी जटिल है . इसे सुलझाने के लिए सकारात्मक सोच चाहिए . भारत से भी ज़्यादा जटिल समस्या शायद अमेरिका में थी क्योंकि वहाँ फ़्रेंच, इटेलियन, स्पेनिश भाषाएँ बोलने वाले किसी मायने में अंग्रेज़ी से कम नहीं हैं . लेकिन अंग्रेज़ी व्यवसाय की भाषा बनी , अमेरिका के आर्थिक प्रभाव से अमेरिकी - अंग्रेज़ी की स्वीकार्यता बढ़ती  चली गयी , उसी के साथ अमेरिकी मनोरंजन,  जिसमें सिनेमा और संगीत का  बहुत प्रभाव है,  केवल और  केवल अंग्रेज़ी में ही रहा , हालिवुड और मोटाउन का प्रभाव अमेरिका तक ही सीमित ही नहींरहा , पूरी दुनिया में छा गया , अंग्रेज़ी अमेरिकी - आर्थिक प्रभुत्व और मनोरंजन की संवाहक बन गयी . यूरोप के अपनी अपनी भाषा पर भयंकर गर्व करने वाले देश  अंग्रेज़ी न अपनाने के कारण जब पीछे होते गए तो वहाँ के बड़े बड़े  शिक्षण संस्थानों को यह विज्ञापित करना पड़ रहा है कि वे अंग्रेज़ी में पढ़ाते हैं !
 यह भी एक बड़ा सच है कि हालाँकि अमेरिका में अंग्रेज़ी को सम्पर्क की मात्र अकेली भाषा के रूप विकसित किया गया है पर साथ ही स्कूलों में दूसरी भाषा के रूप फ़्रेंच, जर्मन, स्पैनिश ही नहीं हिंदी, तमिल , गुजराती में से किसी एक को भी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है . हैरत की बात यह है कि वहाँ भाषा का यह  विकास अंग्रेज़ी-राजभाषा विभाग बनाए बिना ही हुआ है . एक सच यह भी है कि यदि आर्थिक महाशक्ति अमेरिका ने अंग्रेज़ी को अपनी एकल राज, संचार और मनोरंजन की भाषा के रूप में न अपनाया होता तो सम्भवतः अंग्रेज़ी दुनिया भर में इस तेज़ी से नहीं फैली होती क्योंकि अंग्रेज़ी के मॉयके ब्रिटेन में अब इतनी ताक़त ही नहीं है कि वह अंग्रेज़ी को दुनिया में आगे फैला सके .
भारत में हिंदी मनोरंजन की भाषा तो सच में बनी है . हिंदी फ़िल्में, दुनिया भर के भारतियों की अपनी पहचान ही नहीं संस्कृति बन चुकी है . कोई भी भारत वंशियों का सांस्कृतिक कार्यक्रम बिना बालीवुड गानों के पूरा नहीं होता . यही नहीं बालीवुड की हिंदी विदेशों में  पाकिस्तानी, बंगलादेशी , अफ़ग़ानी लोगों को भी भारतियों के साथ खड़ा करती है .लेकिन हिंदी देश में व्यवसाय और संचार की भाषा नहीं बन पायी  इसके लिए सबसे ज़्यादा हिंदी भाषी ही दोषी हैं . हिंदी प्रचार के नाम पर कहानी कविता ही चल रही हैं आर्थिक, तकनीकी और वैज्ञानिक विषयों पर मौलिक चिंतन नहीं किया गया है , अगर इक्का दुक्का हुआ भी है तो उसका दुनिया में पता नहीं है . यदि हिंदी को सच में शिखर पर ले जाना है तो इसमें तकनीकी, विज्ञान और अर्थशास्त्र विषयों पर मौलिक चिंतन हो, मौलिक लेखन हो , लोग अपनायेंगे.
हिंदी दिवस पर सभी हिंदी भाषियों को और उन ग़ैर हिंदी भाषियों को हार्दिक बधाई  जो हिंदी अपना रहे हैं . पर हिंदी दिवस नहीं पूरे साल हिंदी  के लिए कार्य करें . काम मुश्किल है असम्भव नहीं है.

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