Hindi Poem : नफ़रत से डर और प्यार से ज़िन्दगी

नफ़रत से डर और प्यार से ज़िन्दगी...
हमारे तुम्हारे बीच में 
ऐसा क्या घटित हो गया है 
जो हम एक दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे हैं 
यह तुमने कहाँ से सीख लिया है 
अगर मैं तुम्हारे बात से सहमत नहीं हूँ 
तो मैं तुम्हारे साथ नहीं  हूँ 
मुझे तुम्हारे साथ रहने का हक़ ही नहीं है .
सवाल यह है कि आख़िर 
सदियों से चली आ रही दोस्ती 
महज  सहमति या  फिर असहमति की 
तराज़ू पे भला कैसे तौली जा सकती हैं .
सम्बंध महज  दो ध्रुवीय नहीं होते 
इन्हें सींचना पड़ता हैं 
कभी हँसी , कभी भावनाओं तो कभी प्रेम से 
कभी आँसू से तो कभी उद्वेग से 
तो कभी पकवानों की सुगंध से
भला इसमें नफ़रत की गुंजाइश कहाँ है . 
जब तुम नफ़रत करते हो तो हमेशा डरे डरे से रहते हो 
अभी भी समय है 
नफ़रत को प्यार में बदलने का 
ज़िन्दगी प्यार का दूसरा नाम है .

                             -प्रदीप गुप्ता 


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