Hindi Poetry : हवाओं के खिलाफ खड़ा होना .

हवाओं के खिलाफ खड़ा होना .

कहना बहुत सरल है ,
मगर सच में हवाओं के ख़िलाफ़ खड़ा होना बहुत मुश्किल है 
कभी पेड़ों से बात करके देखिए.
यही नहीं हवा कोई भी हो पुरवाई या फिर पछुआ
वृक्ष को सीधे खड़े देख कर टेंशन में आ ज़ाती है 
फिर शुरू होती है हवा की साजिश 
कभी तेज़ चलती है तो कभी अंधड़ बन जाती है 
इस साज़िश में अपने साथ मिला लेती है 
बारिश को , बिजली को , ओलों को.
पर एक बात माननी होगी 
वृक्ष का स्वभाव संघर्ष है 
पत्ती साथ छोड़ देती हैं 
टहनियाँ भी झुक ज़ाती हैं , टूट जाती हैं 
पर पेड़ संघर्ष करता रहता है 
जब तक कि उसका  तना ज़मीन पर बिछ नहीं जाता. 
पर वृक्ष की एक और ख़ूबी भी है 
भले ही लहूलहान हो जाय दम तोड़ दे 
लेकिन जब थक कर हवायें चली जाती हैं 
बारिश लौट आती है 
फिर उसके  ज़मीन में दबी जड़ें वापस उसका आकार लेने लगती हैं .                              
                                                                    -प्रदीप गुप्ता 

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